छत्तीसगढ़

गुरु मोहरसाय देव जयंती पर विशेष आलेख

समाज में शिक्षा, सुमता, समरसता, एकता, बंधुत्व एवं सामाजिक परिवर्तन के प्रणेता हैं- गुरु मोहरसाय देव जी

“समाज में शिक्षा, सुमता, समरसता, एकता, बंधुत्व एवं सामाजिक परिवर्तन के प्रणेता, सूर्यवंशी समाज के अनंत आकाश के प्रकाशवान नक्षत्र, पंच महापुरुषों के आधारस्तंभ परमपूज्य गुरुदेव मोहरसाय देव जी” की आज 173 वीं जयंती है। परमपूज्य मोहरसाय देव जी महान समाज सुधारक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं सामाजिक जागरण के प्रेरणास्रोत हैं। इनका जन्म बिलासपुर जिला के ग्राम महमद में 09 जनवरी 1852 ईस्वी में एक संपन्न परिवार में हुआ था। इनके पिताजी का नाम श्री तुंगन दास और माताजी का नाम श्रीमती बुंदेलिया बाई था। इनकी प्राथमिक शिक्षा बिलासपुर में हुई थी।

समाज के वरिष्ठजनों एवं प्रबुद्धजनों से प्राप्त जानकारी एवं साक्षात्कार के अनुसार परमपूज्य गुरुदेव मोहरसाय देव जी द्वारा समाज उत्थान के लिए किए गये कार्यों में से कुछ मुख्य कार्य निम्नानुसार है:-01.- सन् 1932 में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर जी को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी द्वारा तत्कालीन सी. पी. और बरार प्रांत (मध्य प्रांत) का संयुक्त प्रांतीय अध्यक्ष बनाया गया। परमपूज्य गुरुदेव मोहरसाय देव जी ने बैरिस्टर साहेब से भेंट करके अंग्रेजी शासन में सूर्यवंशी समाज के साथ हो रहे अन्याय और अत्याचार के साथ समाज के ज्वलंत मुद्दों और समस्याओं से अवगत कराते हुए समाधान करने का आग्रह किया।

02. स्वतंत्रता के पूर्व आत्म सम्मान एवं गरिमा पूर्ण कार्य करने के लिए समाज के लोगो के मन में स्वयं के प्रति सम्मान पैदा करने और समय के अनुरूप शिक्षा के माध्यम से जीवन के सभी क्षेत्रों में विकास हेतु प्रेरित करते हुए नारा दिया…

 

” जीना है तो सम्मान से जियो”।।

03. सन् 1924 में शनिचरी पड़ाव बिलासपुर के महा सम्मेलन में परम पूज्य गुरुदेव श्री सहस राम देव और अन्य सहयोगी साथियों के साथ सूर्यवंशी समाज के सर्वांगीण विकास हेतु तत्कालीन परंपराओं एवं कुरीतियों में सुधार करते हुए सूर्यवंशी समाज को नई दिशा की ओर अग्रसर करने का आह्वान किया और नवयुवकों को स्वतंत्रता संग्राम में सहभागिता करने हेतु प्रेरित करते हुए समाज को शिक्षा के द्वारा जागृत करने हेतु युवाओं को संगठित किया।

04.- 1933 में महात्मा गांधी के द्वितीय छत्तीसगढ़ आगमन पर सामाजिक उद्धार कार्यक्रम में बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल साहब के साथ भेंट कर तत्कालीन समाज में व्याप्त अस्पृश्यता एवं विभेदीकरण के बारे में जानकारी प्रदान किया एवं समाज में सुमता और समरसता के लिए किये जा रहे कार्यों के साथ शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे कार्यक्रमों के बारे में अवगत कराते हुए स्वतंत्रता संग्राम में समाज के योगदान को रेखांकित किया

05.- सन् 1942 में “भारत छोड़ो आंदोलन” के तहत पं. रविशंकर शुक्ल और ठाकुर छेदीलाल के नेतृत्व में परमपूज्य गुरूदेव मोहरसाय देव और गुरूदेव सहसराम देव ने सामाजिक पंचों, ग्राम प्रमुखों और मुखिया जनों के साथ अपने जन समूह के साथ आंदोलन में बढ़- चढ़ कर भाग लिया।

06.- स्वतंत्रता से पूर्व हुए विभिन्न आंदोलनों में सहभागिता करते हुए शिक्षा के महत्व को समझ कर समाज के लोगो को शिक्षा ग्रहण करने हेतु प्रेरित करते रहे। तत्कालीन समाज में व्याप्त विभिन्न कुरीतियों का विरोध किया जिसमें नशाखोरी और बाल विवाह विशेष रूप से उल्लेखनीय है। सबके शिक्षा के साथ नारी शिक्षा के लिए उन्होंने कई उल्लेखनीय कार्य किया।

07.समाज में शिक्षा का प्रचार-प्रसार कर जागरूकता अभियान चलाया एवं तत्कालीन समय में उपलब्ध संसाधनों का अधिक से अधिक उपयोग करने हेतु प्रेरित किया। प्रारंभिक शिक्षा के लिए “रहस बेड़ा” को शिक्षा का केंद्र बनाया एवं रात्रि में “पीढ़ा पाठ” के माध्यम से लोगों को शिक्षित करने जैसे अनेकों काम कर समाज में शैक्षणिक वातावरण निर्मित किया। शिक्षा में इनके विशेष योगदान के लिए इन्हें “सामाजिक कुलगुरू” की उपाधि दिया गया।

मानव कल्याण एवं समाज सेवा के इस मिशन में उनके सामने अनेक कठिनाईयां आई, परन्तु वे कभी हार नहीं माने। वे अपने अदम्य साहस व आत्मविश्वास के बल पर उन कठिनाइयों के बीच से ही पूर्वजों के संस्कार, सहनशीलता, भाईचारा, धैर्य, समभाव, नैतिकता, शिष्टाचार और सामाजिक चेतना जैसे विभिन्न धरोहर को अंगीकार करते हुए नई-नई राहें ढ़ूढ़ निकाली और समाज उत्थान के इस अभियान को उत्तरोत्तर आगे बढ़ाया। समग्र समाज के लोगो को सही दिशा देने वालों की अग्रिम पंक्ति में परमपूज्य गुरूदेव मोहरसाय देव जी को खड़ा करें तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी। इतिहास कभी विराम नही लेता, व्यक्ति तो आते-जाते रहते है, किन्तु इतिहास की कसौटी पर वही खरा उतरता है जो अपनी ऋतुजा, सौम्यता तथा सांस्कारिता के कारण मानवीय सेवा को अपनाना कर्तव्य समझता है। ऐसे ही भाव परमपूज्य गुरूदेव मोहरसाय देव जी को अपने समाज के प्रति था। सूर्यवंशी समाज के लिए वे दैदीप्यमान नक्षत्र थे। वे एक सज्जन पुरुष थे, कर्म की धुरी पर उनका जीवन चक्र घूमता रहा और पूरा जीवन समाज उत्थान के कार्यों मे अपने आप को समर्पित कर दिया। निरन्तर कार्य करते हुए अपने जीवनकाल के अंतिम क्षण तक समाजिक कार्य में लगे रहे। गुरूदेव मोहरसाय देव जी सूर्यवंशी समाज के गौरव पुरुष रहे हैं। सन् 1955 को उनका स्वर्गारोहण हुआ। वह अपने सामाजिक कार्यो के लिए सदैव स्मरण किये जायेंगे।”ज्ञान ही जीवन का सार है” ध्येय वाक्य द्वारा समाज में शिक्षा के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन के प्रणेता, परम पूज्य गुरुदेव मोहरसाय देव जी द्वारा समाज के अन्य महापुरुषों के साथ मिलकर समाज को पोषित, पल्लवित, परिष्कृत कर नवसृजन कर उन्होंने हम पर जो उपकार किया है उससे हम आजीवन उऋण नहीं हो सकते। उनके दिखाए गए मार्ग पर चलकर ही आज हम अपने-अपने क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करते हुए समाज का प्रतिनिधित्व कर उनके देखे गए सपनों को साकार कर रहे हैं।  आइए उनके जयंती के अवसर पर हम अपने-अपने घरों में शिक्षा, सुमता, समरसता एवं संगठित होने का प्रतीक एक-एक दीप अवश्य जलाएं, अपने-अपने घरों को सुसज्जित करते हुए मंगल दायक चौका, फूल, रंगोली बनाएं, साफ सुथरे एवं नये कपड़े पहने, अपने सभी स्वजनों को “परम पूज्य मोहरसाय देव जी” की जयंती की शुभकामनाएं एवं बधाइयां प्रेषित करें और इसे एक पर्व का स्वरूप देते हुए घर में विभिन्न प्रकार के पकवान बना कर एवं विभिन्न प्रकार के मंगलमय एवं कल्याणकारी कार्य करते हुए जयंती को उत्सव का स्वरूप देते हुए अपने “सूर्यवंशी” होने का ऋण चुकाने का उद्यम करें। पंच परमेश्वरों के आधारस्तंभ परम पूज्य गुरुदेव मोहरसाय देव जी की आशीष, कृपा एवं शुभेच्छाओं की वजह से संपूर्ण समाज अपना सर्वांगीण विकास कर उन्नति की दिशा की ओर अग्रसर हो रहा है। विकास के पथ पर बढ़ते हुए कदमों को संभालते हुए डगमगाते पैरों को थामते हुए तन से, मन से, धन से, ऊर्जा से, ज्ञान, अनुभव और संयम से आगे बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्पित रहे।

आप सभी को सपरिवार परमपूज्य मोहरसाय देव जी” की 173 वीं जयंती पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं…

 

संकलन

प्रो. गोवर्धन प्रसाद सूर्यवंशी

सहायक प्राध्यापक (हिंदी)

संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय सरगुजा, अंबिकापुर (छ.ग.)

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