अमेरिकी पैंतरा : भारत पर टैरिफ के बाद अब कंगाल पाक पर डाले डोरे, शहबाज शरीफ दोहरी चिंता में फंसे

इस्लामाबाद । दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। रूसी तेल खरीदने को लेकर भारत पर पिछले महीने 25त्न का भारी-भरकम टैरिफ लगाने के बाद अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने नया दांव चला है। भारत के साथ तनाव के बीच अमेरिका ने उसके पड़ोसी और आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। सोमवार को एक अमेरिकी कंपनी ने पाकिस्तान के साथ 50 करोड़ डॉलर (लगभग 4150 करोड़ रुपये) के एक बड़े खनिज निवेश समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसने इस क्षेत्र में एक नई हलचल पैदा कर दी है।
यह समझौता मिसौरी स्थित ‘यूएस स्ट्रैटेजिक मेटल्सÓ और पाकिस्तान के सबसे बड़े खननकर्ता ‘फ्रंटियर वर्क्स ऑर्गनाइजेशनÓ के बीच हुआ है। समझौते के तहत, पाकिस्तान में महत्वपूर्ण खनिजों के खनन के साथ-साथ एक पॉली-मेटैलिक रिफाइनरी भी स्थापित की जाएगी। यह कदम वॉशिंगटन और इस्लामाबाद के बीच पिछले महीने हुए एक व्यापारिक समझौते की अगली कड़ी है। इस डील के बाद पाकिस्तान स्थित अमेरिकी दूतावास ने इसे अमेरिका-पाकिस्तान द्विपक्षीय संबंधों की मजबूती का एक और उदाहरण बताया। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के कार्यालय ने भी बयान जारी कर कहा कि अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के साथ तांबे, सोने और अन्य दुर्लभ खनिज संसाधनों पर बातचीत हुई है। शरीफ लंबे समय से दावा करते रहे हैं कि पाकिस्तान के पास खरबों डॉलर का खनिज भंडार है, जो विदेशी निवेश से देश को कंगाली और कर्ज से उबार सकता है। यह अमेरिकी निवेश जहां पाकिस्तान के लिए एक बड़ी राहत बनकर आया है, वहीं प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के लिए दो बड़ी चिंताएं भी साथ लाया है। 1. बलूचिस्तान के विद्रोही: पाकिस्तान की सबसे बड़ी चिंता यह है कि उसकी अधिकांश खनिज संपदा अशांत और उग्रवाद प्रभावित प्रांत बलूचिस्तान में है। यहां बलूच अलगाववादी लंबे समय से विदेशी कंपनियों द्वारा संसाधनों के दोहन का हिंसक विरोध करते आए हैं। इससे पहले वे चीनी कंपनियों और उनके प्रोजेक्ट्स को भी निशाना बना चुके हैं। खुद अमेरिकी विदेश विभाग ने अगस्त में ‘बलूचिस्तान नेशनल आर्मीÓ को एक विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित किया था। ऐसे में शहबाज शरीफ को डर है कि अगर अमेरिकी कंपनी ने खनन शुरू किया तो बलूच विद्रोही उस पर भी हमला कर सकते हैं, जिससे पूरा प्रोजेक्ट खटाई में पड़ सकता है।
2. पुराने दोस्त चीन की नाराजगी का डर: शरीफ की दूसरी और शायद सबसे बड़ी चिंता उनका सदाबहार दोस्त और सबसे बड़ा कर्जदार चीन है। अमेरिका और चीन के बीच चल रहे वैश्विक प्रभुत्व के संघर्ष से पूरी दुनिया वाकिफ है। पाकिस्तान में चीन ने खरबों डॉलर का निवेश कर रखा है और वह उसका सबसे बड़ा सहयोगी है। ऐसे में जब भारत-अमेरिका के रिश्तों में खटास आई है, तब पाकिस्तान का अमेरिका के करीब जाना चीन को नागवार गुजर सकता है। शहबाज शरीफ को डर है कि अमेरिकी निवेश से नाराज होकर अगर चीन ने हाथ खींच लिया तो पाकिस्तान का भारी-भरकम कर्ज चुकाना नामुमकिन हो जाएगा और उसकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह बैठ जाएगी।
साफ है कि यह अमेरिकी डील पाकिस्तान के लिए एक सुनहरा मौका होने के साथ-साथ एक बड़ी चुनौती भी है, जो शहबाज शरीफ को एक साथ दो मोर्चों पर उलझा रही है।