रायपुर संभाग

 भूपेश बघेल का आइडिया दिल्ली सरकार को भाया, नरवा, गरुवा, घुरवा अउ बारी वाली स्कीम होगी लागू

रायपुर। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की ‘नरवा, गरुवा, घुरवा अउ बारीÓ योजना अब देश के दूसरे हिस्सों को भी प्रेरित कर रही है। दिल्ली के नंगली डेयरी फार्म में एमसीडी द्वारा तैयार किए गए बायोगैस प्लांट की योजना छत्तीसगढ़ के उस विजन से मिलती है, जिसमें हर घर के ‘घुरवाÓ से बायोगैस बनाकर रसोई गैस और खाद का उत्पादन करने की बात की गई थी।
छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए यह योजना बनाई थी। नरवा मतलब नदी, नाले, नहर का पानी, गरुवा का मतलब गाय, भैंस समेत सभी मवेशी, घुरवा का अर्थ है गोबर और उससे जुड़ी चीजें, जैसे- खाद, कम्पोस्ट और बारी का अर्थ घर के पास की खेत, खलिहान जैसी जमीन, जो उर्वरक हो।अगले महीने से दिल्ली में शुरु होगा काम
दिल्ली के नंगली डेयरी फार्म के डेयरी मालिकों के लिए कमाई का एक नया जरिया खुलने वाला है, क्योंकि एमसीडी ने नंगली में बीओटी योजना के तहत एक बायोगैस प्लांट तैयार किया है जिसे अगले महीने शुरू करने की योजना है। इस प्लांट के शुरू होने से डेयरी मालिक अपनी गाय और भैंसों का गोबर प्लांट चलाने वाली कंपनी को बेचकर हर महीने हजारों रुपये कमा सकेंगे, जिससे उनकी आय में वृद्धि होगी और गोबर को नालों में बहाने की समस्या से भी निजात मिलेगी। एमसीडी केंद्रीय आवासन और शहरी विकास मंत्रालय की मदद से तीन बायोगैस प्लांट बना रही है, जिनमें से नंगली का प्लांट तैयार हो चुका है और अन्य दो प्लांट गोयला डेयरी और घोगा डेयरी में तैयार किए जा रहे हैं।656 रुपए प्रति टन के हिसाब से होगी खरीदी
अधिकारियों के अनुसार, नंगली में तैयार बायोगैस प्लांट 2.72 एकड़ जमीन में बना है और इसकी क्षमता 200 मीट्रिक टन गोबर को प्रोसेस करने की है। प्लांट का काम दिसंबर 2018 में शुरू हुआ था और इसे जून 2022 तक तैयार होना था, लेकिन कुछ कारणों से इसमें देरी हुई। एमसीडी अधिकारियों ने बताया कि प्लांट चलाने वाली कंपनी डेयरी मालिकों से 656 रुपये प्रति टन की दर से गोबर खरीदेगी। कंपनी गोबर से तैयार होने वाली सीएनजी को आईजीएल कंपनी को सप्लाई करेगी। गैस बनाने के बाद कंपोस्ट खाद का इस्तेमाल पार्कों आदि को हराभरा बनाने में किया जाएगा। अधिकारियों ने बताया कि अभी तक एमसीडी के पास गोबर को ठिकाने लगाने के लिए कोई प्लान नहीं था। डेयरी मालिक गोबर को नालियों में बहा देते थे या फिर गोबर बाकी कूड़े के साथ सीधे लैंडफिल साइटों पर पहुंचाया जा रहा था। बायोगैस प्लांट शुरू होने के बाद गोबर को नालों में बहाना बंद हो जाएगा।

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