चुनाव का वो एक दिन,,
डॉ.क्षमा पाटले के कलम से,,

चुनाव का वो एक दिन
वोट और चुनाव की घड़ी है एक- एक वोट कीमती है
लोग मस्त हैं त्यौहारों सी झड़ी है
कल तक भुखमरी मिटाने को सरकार के पास पैसे नहीं थे
आज चुनाव के लिए आसमान से नोट बसर रहे हैं
कहीं साड़ी कहीं पायल बट रहे हैं
कहते हैं सोने के भाव आसमान चढ़ गये
कहीं दारू मुर्गे भंडारे चढ़ रहें हैं
पी – पी कर शराब कुछ लोग सड़कों पर शव की तरह पड़े हैं
चाट – चाट कर कुत्ते जिनके मुं पर मूत रहे हैं
औरतें नये रंग बिरंगे कपड़ों में कतार बद्ध खड़े हैं
पुरूष मैले कुचैले कपड़ों में हिलते डुलते वहीं खड़े अडे हैं
नशे में धुत्त उन्हें अपनी सुध कहां
पाजामे भी अपनी जगह से सरक रहें हैं
बच्चों को भी खूब मिले हैं खिलौने
बैट बाल टी शर्ट वे धोनी धोनी खेल रहे हैं
बूढ़े भी खुश हैं कोई हारे कोई जीते , हमें क्या
हमें तो पूरे पैसे मिले हैं
सब खुश हैं अपने अपने धुन में
जब चुनाव की लिस्ट आई योग्य प्रत्याशी हार गया
धनवान प्रत्याशी बाजी मार गया
लोग न वोट का महत्व समझ पाये
न सही – सही ईमानदारी से वोट कर पाये
वर्तमान समय में चुनाव की यह कड़वी सच्चाई है
पैसों के बल पर सरपंच,विधायक, सांसद क्या
सरकार भी बदल जाती है ,
जो जीता वही सिकंदर आम जनता फिर से गुलाम बन जाती है।